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कबीर अमृतवाणी | Sant kabeer Dohe हिंदी भजन लिरिक्स | कबीर जी के नए दोहे | कबीर जी के मशहूर दोहे | कबीर भजन | Beautiful Kabir das bhajan | कबीर अमृतवाणी | कबीर भजन | कबीर जी के नए दोहे | कबीर भजन माला
कबीरदास जी के भजन बहुत ही सुन्दर हैं जिन्हे सुनकर आप आनंद में मगन हो जायेंगे ऐसे ही अदभुद भजनो का संग्रह हैं |
Read more about : Shri krishna govind hare murariकबीर दास जी भजन - तूने रात गँवायी सोय
तूने रात गँवायी सोय के, दिवस गँवाया खाय के।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥
सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे।
बाहर का पट बंद कर ले अंतर का पट खोल रे।
माला फेरत जुग हुआ, गया ना मन का फेर रे।
गया ना मन का फेर रे।
हाथ का मनका छाँड़ि दे, मन का मनका फेर॥
दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय रे।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय रे।
सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद रे।
दुख में करता याद रे।
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद॥
कबीर दास जी भजन - बहुरि नहिं आवना
बहुरि नहिं आवना या देस॥ टेक॥
जो जो ग बहुरि नहि आ पठवत नाहिं सँस॥
सुर नर मुनि अरु पीर औलिया देवी देव गनेस॥
धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस॥
जोगी जंगम औ संन्यासी दिगंबर दरवेस॥
चुंडित मुंडित पंडित लो सरग रसातल सेस॥
ज्ञानी गुनी चतुर अरु कविता राजा रंक नरेस॥
को राम को रहिम बखानै को कहै आदेस॥
नाना भेष बनाय सबै मिलि ढूंढि फिरें चहुँदेस॥
कहै कबीर अंत ना पैहो बिन सतगुरु उपदेश॥
कबीर दास जी भजन - मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
जो सुख पाऊँ राम भजन में, सो सुख नाहिं अमीरी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
भली बुरी सब की सुनलीजै, कर गुजरान गरीबी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
आखिर यह तन छार मिलेगा, कहाँ फिरत मग़रूरी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
प्रेम नगर में रहनी हमारी, साहिब मिले सबूरी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
कहत कबीर सुनो भयी साधो, साहिब मिले सबूरी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
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तूने रात गँवायी सोय के, दिवस गँवाया खाय के।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥
सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे।
बाहर का पट बंद कर ले अंतर का पट खोल रे।
माला फेरत जुग हुआ, गया ना मन का फेर रे।
गया ना मन का फेर रे।
हाथ का मनका छाँड़ि दे, मन का मनका फेर॥
दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय रे।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय रे।
सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद रे।
दुख में करता याद रे।
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद॥
कबीर दास के भजन लिखित में | nirgun bhajan hindi | BHAJAN LYRICS | BHAJAN LYRICS IN HINDI | bhajan sangrah lyrics पॉपुलर भजन लिरिक्स
कबीर दास जी हिंदी भाषा के महान प्रसिद्ध कवि हे | संत Kabir Das जी ने अपने जीवनकाल में अनेक प्रकार की रचनाये की जैसे दोहे , भजन , अमृतवाणी आदि जो हम आज भी पढ़ते हे और सुनते हे | इनके द्वारा लिखी गयी कविताये दोहे आदि आम बोलचाल की भाषा में ही हे | इस भाषा का जानकार इनसे बढ़कर और कोई नहीं हे | संत कबीर दास जी के प्रत्येक दोहे ( Kabir Das ke Dohe ) का अपने आप में एक महत्वपूर्ण और अलग ही अर्थ है | इनके द्वारा रचित दोहो को आप सुनकर उसे अपने जीवन में अनुसरण करते है तो निश्चित ही आपको ईश्वर की प्राप्ति होगी |
बहुरि नहिं आवना या देस॥ टेक॥
जो जो ग बहुरि नहि आ पठवत नाहिं सँस॥
सुर नर मुनि अरु पीर औलिया देवी देव गनेस॥
धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस॥
जोगी जंगम औ संन्यासी दिगंबर दरवेस॥
चुंडित मुंडित पंडित लो सरग रसातल सेस॥
ज्ञानी गुनी चतुर अरु कविता राजा रंक नरेस॥
को राम को रहिम बखानै को कहै आदेस॥
नाना भेष बनाय सबै मिलि ढूंढि फिरें चहुँदेस॥
कहै कबीर अंत ना पैहो बिन सतगुरु उपदेश॥
Kabir bhajan |
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
जो सुख पाऊँ राम भजन में, सो सुख नाहिं अमीरी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
भली बुरी सब की सुनलीजै, कर गुजरान गरीबी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
आखिर यह तन छार मिलेगा, कहाँ फिरत मग़रूरी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
प्रेम नगर में रहनी हमारी, साहिब मिले सबूरी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
कहत कबीर सुनो भयी साधो, साहिब मिले सबूरी में,
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में॥
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कबीर दास जी भजन - रे दिल गाफिल गफलत
रे दिल गाफिल गफलत मत कर, एक दिना जम आवेगा॥
सौदा करने या जग आया, पूजी लाया मूल गँवाया|
प्रेमनगर का अन्त न पाया, ज्यों आया त्यों जावेगा॥
सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्या क्या कीता|
सिर पाहन का बोझा लीता, आगे कौन छुड़ावेगा॥
परलि पार तेरा मीता खडिया, उस मिलने का ध्यान न धरिया|
टूटी नाव उपर जा बैठा, गाफिल गोता खावेगा॥
दास कबीर कहै समुझाई, अन्त समय तेरा कौन सहाई|
चला अकेला संग न को, किया अपना पावेगा॥
कबीर दास जी के अन्य दोहे के लिए यहां क्लिक करे
कबीर दास जी भजन - नैया पड़ी मंझधार
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार।
साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये।
हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं।
अंतरयामी एक तुम आतम के आधार।
जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार।
गुरु बिन कैसे लागे पार॥
मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार।
तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार।
अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़।
जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज।
गुरु बिन कैसे लागे पार॥
रे दिल गाफिल गफलत मत कर, एक दिना जम आवेगा॥
सौदा करने या जग आया, पूजी लाया मूल गँवाया|
प्रेमनगर का अन्त न पाया, ज्यों आया त्यों जावेगा॥
सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्या क्या कीता|
सिर पाहन का बोझा लीता, आगे कौन छुड़ावेगा॥
परलि पार तेरा मीता खडिया, उस मिलने का ध्यान न धरिया|
टूटी नाव उपर जा बैठा, गाफिल गोता खावेगा॥
दास कबीर कहै समुझाई, अन्त समय तेरा कौन सहाई|
चला अकेला संग न को, किया अपना पावेगा॥
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कबीर दास जी भजन - नैया पड़ी मंझधार
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार।
साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये।
हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं।
अंतरयामी एक तुम आतम के आधार।
जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार।
गुरु बिन कैसे लागे पार॥
मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार।
तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार।
अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़।
जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज।
गुरु बिन कैसे लागे पार॥
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