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कबीर अमृतवाणीकबीरnt kabeer Dohe | हिंदी भजन लिरिक्स | कबीर जी के नए दोहे | कबीर जी के मशहूर दोहे | कबीर भजन ।
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कबीर दास जी भजन नंबर – 1 केहि समुझावु सब
कबीर दास जी भजन नंबर –3 दिवाने मन भजन
दिवाने मन भजन बिना दुख पेहो ॥
पहिला जनम भूत का पैहो सात जनम पछिताहो।
काँटा पर का पानी पैहो प्यासन ही मरि जैहो॥
दूजा जनम सुवा का पैहो बागबसेरा लैहो।
टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहो॥
बाजीगर के बानर हो लकडिन नाच नचैहो।
ऊॅंच नीच से हाय पसरि हो माँगे भीख न पैहो॥
तेली के घर बैला होहो आँखिन ढाँपि ढॅंपैहो।
कोस पचास घरै माँ चलिहो बाहर होन न पैहो॥
पॅंचवा जनम ऊॅंट का पैहो बिन तोलन बोझ लदैहो।
बैठे से तो उठन न पैहो खुरच खुरच मरि जैहो॥
धोबी घर गदहा होहो कटी घास नहिं पैंहो।
लदी लादि आपु चढि बैठे लै घटे पहुँचैंहो॥
पंछिन माँ तो कौवा होहो करर करर गुहरैहो।
उडि के जय बैठि मैले थल गहिरे चोंच लगैहो॥
सत्तनाम की हेर न करिहो मन ही मन पछितैहो।
कहै कबीर सुनो भै साधो नरक नसेनी पैहो॥
कबीर दास जी भजन नंबर – 4 झीनी झीनी बीनी
झीनी झीनी बीनी चदरिया ॥
काहे कै ताना काहे कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया ॥
इडा पिङ्गला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्व गुन तीनी चदरिया ॥
साँ को सियत मास दस लागे, ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढी, ओढि कै मैली कीनी चदरिया ॥
दास कबीर जतन करि ओढी, ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया ॥
कबीर दास जी भजन नंबर – 5 बीत गये दिन भजन
बीत गये दिन भजन बिना रे, भजन बिना रे भजन बिना रे |
बाल अवस्था खेल गँवायो, जब यौवन तब मान घना रे |
लाहे कारण मूल गँवायो, अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे |
कहत कबीर सुनो भई साधो, पार उतर गये संत जना रे |
KABIR BHAJAN |
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संत श्री कबीरदास जी हिंदी भाषा साहित्य में भक्तिकाल के एकमात्र ऐसे कवि, जो आजीवन समाज सुधार और लोगों में पनप रहे आडंबरों पर कुठराघात करते रहे। उनकी रचनाओं में कर्म प्रधान समाज के पैरोकार के रूप में इनकी झलक साफ दिखाई देती है। उनका सारा जीवन लोक कल्याणकारी कार्यो के लिए ही हुआ था ।
कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व - प्रेमी का अनुभव था। अबाध गति और अदम्य प्रखरता उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी | कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है। डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार कबीरदास जी साधना के क्षेत्र में युगगुरु थे|
कबीरदास जी के भजन बहुत ही सुन्दर हैं जिन्हे सुनकर आप आनंद में मगन हो जायेंगे ऐसे ही अदभुद भजनो का संग्रह हैं जिसे आप खुद सुने और दुसरो को भी सुनाये |
KABIR BHAJAN |
केहि समुझावु सब जग अंधा ॥
इक दो होयँ उन्हैं समुझावु , सबहि भुलाने पेट के धंधा ।
पानी घोड पवन असरवा, ढरकि परै जस ओसक बूंदा ॥
गहिरी नदी अगम बहै धरवा, खेवन-हार के पडिगा फंदा ।
घर की वस्तु नजर नहि आवत, दियना बारिके ढूँढत अँधा॥
लागी आगि सबै बन जरिगा, बिन गुरुज्ञान भटकिगा बंदा ।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, जाय लंगोटी झारि के बंदा ॥
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कबीर दास का जन्म 1398 ई० में हुआ था। कबीर दास के जन्म के संबंध में लोगों द्वारा अनेक प्रकार की बातें कही जाती हैं कुछ लोगों का कहना है कि वह जगत गुरु रामानंद स्वामी ( Ramanand Swami ) जी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे तथा कुुछ कबीर पंथी यह मानते है कि काशी में लहरतारा नामक तालाब में उत्पन्न कमल के पुष्प पर बालक के रूप में उत्पन्न हुए थे |
कबीर दास जी हिंदी के महान प्रसिद्ध कवि हे | संत Kabir Das जी ने अपने जीवनकाल में अनेक प्रकार की रचनाये की जैसे दोहे , भजन , अमृतवाणी आदि जो हम आज भी पढ़ते हे और सुनते हे | इनके द्वारा लिखी गयी कविताये दोहे आदि आम बोलचाल की भाषा में ही हे | इस भाषा का जानकार इनसे बढ़कर और कोई नहीं हे | इनका जन्म १३९८ ईस्वी में हुआ था | इनके जन्म के बारे में अनेक भ्रांतिया प्रचलित हे | कुछ लोगो का कहना हे की कबीर दास जी जगत गुरु रामानंद स्वामीजी के आशीर्वाद के फलस्वरूप काशी में रहने वाली एक विधवा ब्राह्मणी के यहां पैदा हुए थे।
संत कबीर दास जी के प्रत्येक दोहे ( Kabir Das ke Dohe ) का अपने आप में एक महत्वपूर्ण और अलग ही अर्थ है | उनके एक एक दोहे और रचना में इतना गूढ़ अर्थ हे की यदि आप उनके दोहे को सुनते हे और उसे अपने जीवन में अनुसरण करते है तो निश्चित ही आपको मन की शांति के साथ ईश्वर की प्राप्ति होगी |
दोहे ( Kabir Das ke Dohe )
कबीर दास जी भजन नंबर –2 राम बिन तन को
राम बिन तन को ताप न जाई, जल में अगन रही अधिकाई॥
राम बिन तन को ताप न जाई॥
तुम जल निधि में जलकर मीना, जल में रहहि जलहि बिनु जीना॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम पिंजरा में सुवना तोरा, दरसन देहु भाग बड़ मोरा॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम सद्गुरु में प्रीतम चेला, कहै कबीर राम रमूं अकेला॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
कबीरदास जी के भजन | कबीरदास भजन संग्रह | कबीरदास भजनमाला
राम बिन तन को ताप न जाई, जल में अगन रही अधिकाई॥
राम बिन तन को ताप न जाई॥
तुम जल निधि में जलकर मीना, जल में रहहि जलहि बिनु जीना॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम पिंजरा में सुवना तोरा, दरसन देहु भाग बड़ मोरा॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
तुम सद्गुरु में प्रीतम चेला, कहै कबीर राम रमूं अकेला॥
राम बिनु तन को ताप न जाई॥
कबीरदास जी के भजन | कबीरदास भजन संग्रह | कबीरदास भजनमाला
KABIR BHAJAN |
दिवाने मन भजन बिना दुख पेहो ॥
पहिला जनम भूत का पैहो सात जनम पछिताहो।
काँटा पर का पानी पैहो प्यासन ही मरि जैहो॥
दूजा जनम सुवा का पैहो बागबसेरा लैहो।
टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहो॥
बाजीगर के बानर हो लकडिन नाच नचैहो।
ऊॅंच नीच से हाय पसरि हो माँगे भीख न पैहो॥
तेली के घर बैला होहो आँखिन ढाँपि ढॅंपैहो।
कोस पचास घरै माँ चलिहो बाहर होन न पैहो॥
पॅंचवा जनम ऊॅंट का पैहो बिन तोलन बोझ लदैहो।
बैठे से तो उठन न पैहो खुरच खुरच मरि जैहो॥
धोबी घर गदहा होहो कटी घास नहिं पैंहो।
लदी लादि आपु चढि बैठे लै घटे पहुँचैंहो॥
पंछिन माँ तो कौवा होहो करर करर गुहरैहो।
उडि के जय बैठि मैले थल गहिरे चोंच लगैहो॥
सत्तनाम की हेर न करिहो मन ही मन पछितैहो।
कहै कबीर सुनो भै साधो नरक नसेनी पैहो॥
कबीर दास जी भजन नंबर – 4 झीनी झीनी बीनी
KABIR BHAJAN |
काहे कै ताना काहे कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया ॥
इडा पिङ्गला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्व गुन तीनी चदरिया ॥
साँ को सियत मास दस लागे, ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढी, ओढि कै मैली कीनी चदरिया ॥
दास कबीर जतन करि ओढी, ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया ॥
कबीर दास जी भजन नंबर – 5 बीत गये दिन भजन
बीत गये दिन भजन बिना रे, भजन बिना रे भजन बिना रे |
बाल अवस्था खेल गँवायो, जब यौवन तब मान घना रे |
लाहे कारण मूल गँवायो, अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे |
कहत कबीर सुनो भई साधो, पार उतर गये संत जना रे |
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