Shivji ki Aarti | Om Jai Shiv Omkara | Om Jai Shiv Omkara lyrics in hindi

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Shiv Aarti

Shivji ki Aarti “Om Jai Shiv Omkara”: आरती शिवजी की | ओम जय शिव ओंकारा | शिव आरती | shiv aarti lyrics in hindi | शिवजी की आरती

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शिव जी की आरती करने का महत्व


सोमवार का दिन महादेव भोलेनाथ Bhagwan Shiv का दिन माना गया है | इस दिन शिव भगवान की विशेष रूप से पूजा करनी चाहिए | इससे भोलेनाथ भक्तों पर प्रसन्न रहते हैं और उनकी विशेष कृपा रहती है.सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा के दौरान इस आरती shiv aarti को जरुर पढ़ना चाहिए | भगवान शिव की आरती पढ़ने से नकारात्मक शक्तिया दूर हो जाती हे |

Shiv Aarti
माता लक्ष्मी की कृपा सदैव बनाये रखने के लिए भगवान् शिव की भक्ति करनी चाहिए। जिससे व्यक्ति को कभी भी आर्थिक समस्याएं से संघर्ष नहीं पड़ता है। कहा जाता हे की एकमात्र भोलेनाथ ही ऐसे भगवान है, जो बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं क्योकि उन्हें नाम के अनुरूप ही भोला कहा जाता हे। उनके प्रसन्न होने से व्यक्ति के सभी संकट दूर हो जाती है।
भगवान् शिव को भोलेनाथ, गंगाधर, त्रिलोकीनाथ, नीलकंठ आदि नामों से भी जाना जाता हैं। शिवजी की आरती ओम जय शिव ओंकारा पढ़ने से भक्तो पर भाेलेनाथ की कृपा बरसती है | मान्यता हे की भगवान् शिव की पूजा करने से गृहस्त व्यक्ति का जीवन हमेशा सुखमय बना रहता है।

भोलेलाथ की आरती पढ़ने से सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं। यदि आप भोलेनाथ की कृपा बनाएं रखना चाहते है, तो यह आरती सुबह-शाम जरूर पढ़ें। यहां आप भोलेनाथ की आरती देखकर पढ़ सकते हैं।

भगवान शिव की आरती यहां हर रोज पढ़ें : Shivji ki Aarti, Om Jai Shiv Omkara

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शिवजी की आरती

ओम जय शिव ओमकारा, स्वामी जय शिव ओमकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओमकारा॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।

हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओमकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।

त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओमकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।

त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ओम जय शिव ओमकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।

सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओमकारा॥


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कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।

सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥ ओम जय शिव ओमकारा ॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

मधु-कैटप दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥ ओम जय शिव ओमकारा॥

लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।

पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥ ओम जय शिव ओमकारा॥


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पर्वत सोहे पार्वती, शंकर कैलासा।

भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओमकारा ॥

जटा में गंगा बहत है, गल मुण्डन माला।

शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओमकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।

नित उठ दर्शन पावे, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओमकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोइ नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, मनवाँछित फल पावे॥

ओम जय शिव ओमकारा॥ ओम जय शिव ओमकारा॥

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