Why do we do Aarti for chief guest in a function?

Why do we do Aarti for chief guest in a function?
 
Aarti for chief guest in a function? 
जब
भी कोई अतिथि घर आये तो उनका ख़ुशी के साथ स्वागत करना हमारा धर्म हे | कोई भी समारोह हो हमारी संस्कृति रही हे की अतिथि के स्वागत और सम्मान के साथ उस समारोह की शुरुआत की जाये | क्युकी अतिथि भगवान के समान होता है. इसलिए उनका सम्मान करने से और अच्छा व्यवहार करने से उनके मुख से हमारे लिए शुभ आशीर्वाद प्रदान किया जाता हे और अतिथि भी खुश रहते हे |

Aarti for chief guest in a function
हिन्दू धर्म में अतिथि को भगवान के बराबर माना जाता है। हिन्दू संस्कृति में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान की पूजा पाठ आरती की जाती है। अतः इस कारण समारोह में अतिथि का स्वागत सत्कार के साथ आरती की जाती है | 

Aarti for chief guest in a function
Why do we do Aarti for chief guest in a function? 
इसीलिए शास्त्रों के अनुसार हिन्दू धर्म में अतिथियों के लिए कहा गया हे -"अतिथि देवो भव:" | कोई भी समारोह हो सबसे पहले अतिथि का आरती करने के साथ स्वागत करना हमारी परम्परा रही हे | आरती किये बिना अतिथि के स्वागत को हिन्दू धर्म में अधूरा माना जाता हे | 
How many time to do aarti | Why do we do aarti at home?

Aarti for chief guest in a function
भारत देश के विभिन्न स्थलों पर आरती और स्वागत करने की परम्परा भिन्न भिन्न रही हे | क्युकी भारत देश अनेकता में एकता का देश हे | ऐसा माना जाता हे की 
Aarti for chief guest in a function अतिथि का आरती के साथ स्वागत करने से अतिथि के घर में प्रवेश करने से उनके साथ सुख समृद्धि भी प्रवेश करती हे | 

Why do we do Aarti for chief guest in a function? 
कोई भी कार्य करने के लिए हमें मन को साफ़ रखना चाहिए क्युकी साफ़ मन से किये गए कार्य के प्रति प्राप्त फल भी अच्छा होता हे | भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता की उपाधि दी गई है | पौराणिक काल से ही अतिथि को भगवान् के बराबर माना गया हे इसलिए अतिथि का आदर करना देवता का आदर करना माना गया हे | 

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अतिथि का आदर करने से रिश्ते मजबूत बनते है| अब प्रश्न यह हे की हम क्यों मानते हैं अतिथि को भगवान? पौराणिक काल से ही यह माना जाता था की किसी साधु , संन्यासी, संत, ब्राह्मण आदि का हमारे घर पर आकर भिक्षा मांगना या कुछ दिन के लिए शरण मांगने वालों को भगवान के बराबर माना जाता था। इसके विपरीत कार्य करना पाप माना जाता था। क्युकी यह वह समय था जब स्वयं भगवान किसी किसी न कीसी का रूप धारण करके आते थे। तभी से यह धारणा चली आ रही है कि अतिथियों का स्वागत करना चाहिए अर्थात अतिथि देवों भव:। 
इसलिए ये माना जाता हे की हमें किसी भी समारोह में सबसे पहले देवताओ की आरती के बाद मुख्य अतिथि की आरती के साथ उनका स्वागत करना चाहिए |

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