बाबा रामदेव | Baba Ramdev ji | greatbhajan lyrics| rajasthani bhajan lyrics । लोकदेवता बाबा रामदेव जी
जनमानस के पूज्य स्थानिय महापुरुषों को लोकदेवता कहा जाता हे | लोकदेवता वे वीर पुरुष जिन्होंने अपने अलौकिक और चमत्कारिक कृत्यों से कोई जनहितार्थ कार्य किया हे | लोकदेवता ने हिन्दू धर्म के रक्षा के लिए और सांस्कृतिक मूल्यों हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए |
लोकदेवता किन्हे और क्यों कहा जाता हे ये तो उस समय पर निर्भर करता हे फिर भी हमारे शब्दों में इसकी परिभाषा ये हे की समय-समय पर उत्कृष्ट कार्य, बलिदान, परोपकार करने वाले महान व्यक्तित्व को 'लोक देवता' या 'पीर' की श्रेणी में गिना जाता है | और उन्हें लोकदेवता की उपाधि दी जाती हे | ऐसे महान कार्य करने वाले बहुत ही कम लोग होते हे | उन्ही महान आत्माओ में से एक लोकदेवता जिन्हे रामसा पीर के नाम से जाना जाता हे उनके बारे में थोड़ा जान लेते हे | तो आइये पढ़ते हे बाबा रामदेव जी के जीवन काल के बारे में -
पीरा का पीर रामसा पीर , रामापीर आदि नामो से प्रसिद्ध बाबा रामदेव जी राजस्थान के लोकदेवता हे | जिनको लोग बड़ी श्रद्धा के साथ पूजते हे | राजस्थान ही नहीं अपितु गुजरात और भारत देश के अन्य राज्यों में भी इन्हे बड़ी श्रद्धा के साथ पूजा जाता हे |
रामदेव जी का जन्म 1462 ई. में उडुकासमेर जिला बाड़मेर राजस्थान के तंवर वंशीय राजा अजमाल जी के घर भगवान विष्णु जी के आशीर्वाद से हुआ इनकी माता का नाम मेणादे था | भगवान विष्णु जी ने अजमाल जी को वरदान दिया था की भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को में आपके घर अवतार लूंगा और उसी दिन भाद्रपद माह की दूज को इन्होने जन्म लिया | इस तिथि को बाबे री बीज के नाम से भी जाना जाता हे | इनकी जन्म की तिथि ( भाद्रपद शुक्ल दूज ) और एकादशी को इनके नाम से जो जागरण किया जाता हे उसे जम्मा कहते हे |
इन्हे अर्जुन का वंशज माना जाता हे | इनके भाई का नाम बरामदे था तथा बहिन का नाम सुगना बाई था इनकी एक धर्म बहन भी थी जिसका नाम डाली बाई था और इनके गुरु श्री बालीनाथ जी हे | बाबा रामदेव जी विवाह वर्तमान पाकिस्तान में स्थित अमरकोट सोडा के दलसिंह की पुत्री राणी नेतलदे के साथ संपन्न हुआ | नेतलदे जो की जन्म से ही विकलांग थी बाबा रामदेव उनके सपने में आये और उनका हाथ पकड़कर उनको चलाया तो नेतलदे ने मन ही मन निश्चय कर लिया की मेरा विवाह रामदेव जी के साथ ही होगा | इनके अवतारी होने के प्रमाण के लिए इनके द्वारा कई चमत्कार किये गए उन चमत्कारों को ही परचा कहा जाता हे |
इनके प्रतिक चिन्ह के रूप में इनके पगल्ये ( चरण चिन्ह ) को पूजा जाता हे | इनको कपडे का बना घोडा चढ़ाया जाता हे | इनको जो कपडे का बना घोडा चढ़ाया जाता हे उसे घोड़ला कहते हे | रामदेव जी के घोड़े का नाम लीला था | इसलिए इन्हे लीले रा असवार भी कहा जाता हे |
baba ramdev ji ka jivan parichay , About Baba Ramdev in hindi । पीरो के पीर बाबा रामदेव जी
हिन्दू धर्म के लोग इन्हे कृष्ण का अवतार मानकर तथा मुस्लिम समुदाय के लोग इन्हे पीर के रूप में पूजते हे | इनके भक्तो को रिखिया ( मेघवाल जाति के लोग ) कहते हे परन्तु इनके प्रिय भक्तो को जातरू कहते हे | बाबा रामदेव जी का प्रसिद्ध मंदिर स्थल इनका समाधी स्थल हे जो की रामदेवरा ( तहसील पोकरण ) में स्थित हे | बाबा रामदेव जी ने भाद्रपद शुक्ल एकादशी 1515 ईस्वी को रामदेवरा गांव में जीवित समाधी ली थी | जिसे रूणिचा के नाम से भी जाना जाता हे |
इनके समाधी स्थल को रामदेवरा की पाल भी कहते हे | इस स्थान पर प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक मेला लगता है | इस मेले में प्रमुख आकर्षण का केंद्र तेरहताली नृत्य हे जो कामङिया जाति के लोग प्रस्तुत करते हे | बाबा रामदेव जी का ये मेला सांप्रदायिक सदभावना का सबसे अच्छा उदाहरण हे | पोकरण और उसके आस पास के स्थान को रामदेव जी ने योग साधना के बल पर यह के तांत्रिक राक्षस भैरव का अंत करके लोगों को उससे मुक्ति दिलाई थी | बाबा रामदेव जी ने लोगो के लिए अनेक कल्याणकारी कार्य किये |
इनके अन्य छोटे मंदिरो को देवरा कहा जाता हे जिन पर पचरंगी ध्वजा या सफ़ेद ध्वज फेहरायी जाती हे | इस ध्वजा को नेजा कहा जाता हे | ये एक ऐसे लोकदेवता हे जिनके गीत सबसे लम्बे हे | एकमात्र लोकदेवता जो एक कवि भी थे इनके द्वारा लिखी गयी चौबीस वाणिया बहुत प्रसिद्ध हे |
कहते हे की रामदेव समाधी लेने से एक दिन पहले इनकी धर्म की बहिन डाली बाई ने रामदेव जी की ही आज्ञा से जल समाधी ली | इनके मंदिर के पास ही डाली बाई का बाई का मंदिर हे |
इनके मंदिर जोधपुर में मसूरिया पहाडी पर और बिराटिया जिला पाली , सूरताखेड़ा जिला चित्तौड़गढ़ तथा छोटा रामदेवरा गुजरात में स्थित है | इनके कदम्ब के वृक्ष के निचे बनाये गए स्थान को थान कहते हे | इनके द्वारा शोषण के खिलाफ एक अभियान चलाया गया जिसे जाम्मा जागरण के नाम से जाना जाता हे | रामदेव जी की फड़ का जैसलमेर और बीकानेर में ब्यावले भक्तों के द्वारा वाचन किया जाता हे |
बाबा रामदेव को पांच पीरो में गिना जाता हे और इन्हे पीरो के पीर कहा जाता हे | इसके पीछे एक घटना हे की क्यों इन्हे पीरो के पीर कहा जाता हे |
कहते हे की एक बार मक्का मदीना से कुछ पीर इनकी परीक्षा लेने के लिए आये | जब ये पीर बाबा रामदेव जी के पास गए तो रामदेव जी ने इनका आदर सत्कार किया और इन्हे भोजन के लिए आमंत्रित किया | इस पर पीरो ने कहा की हम हमारे ही कटोरे में भोजन करते हे और वो भोजन के कटोरे तो मक्का में ही रह गए तो अब हम भोजन ग्रहण नहीं कर सकते हे किसी तरह हमारे वो कटोरे हमें यहाँ मिल जाये तो हम भोजन कर सकते हे |
इस बात पर रामदेव जी ने कहा की आपकी भोजन ग्रहण करने की इच्छा जरूर पूरी की जाएगी इतना कहकर रामदेव जी ने आसमान की और हाथ बढ़ाया और पल भर में ही उन पीरो के वो कटोरे प्रकट हो गए | इसके बाद उन पीरो ने भोजन किया तथा भोजन ग्रहण करने के बाद पीरो ने कहा हम तो केवल पीर हे और आप तो पीरो के पीर हो | तब से बाबा रामदेव को पीरो के पीर कहा जाता हे |
कहते हे की जब बाबा रामदेव जी का विवाह हुआ था और वे रानी नेतलदे के साथ वापस घर आ रहे थे तब इनके भाणु ( सुगना का पुत्र ) को सांप ने काट लिया था | रामदेव जी के पुकारने पर भानु नहीं आया तो सुगना बाई बोली अब भानु कभी नहीं आएगा तब बाबा ने चमत्कार से अपने भानु को जीवित कर सुगना बाई को परचा दिया |
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