kabir das ji ke dohe | kabir das ji ke bhajan lyrics | कबीर दास के दोहे

Manushya janam anmol re bhajan lyrics in hindi | मनुष्य जनम अनमोल रे भजन लिरिक्स हिंदी
Kabir Bhajan Hindi Lyrics | kabir das ji ke bhajan | greatbhajan


kabir das ji ke dohe
kabir das ji ke dohe

Kabir das ji ke dohe lyrics



नमस्कार साथियो आज हम आपके लिए बहुत ही मजेदार पोस्ट लेकर आये हे जिसमे आप संत श्री कबीर दास के दोहे पढ़ेंगे और जीवन का ज्ञान प्राप्त करेंगे | इस पोस्ट में कबीर दास जी के दोहे के लिरिक्स दिए गए हे और उनका साथ में अर्थ भी दिया गया हे जिससे आप उस दोहे और और आसानी से समझ सकते हे और कुछ ज्ञान प्राप्त कर सकते हे | 


कबीर दास जी के एक एक दोहे में जीवन का बहुत ही गहरा अर्थ छुपा होता हे क्युकी कबीर दास जी को जीवन का बड़ा गहरा अनुभव था वे ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे उन्होंने जिंदगी को जैसा देखा वैसा ही अपनी भाषा में लिखना शुरू कर दिया और उनका प्रत्येक दोहा गहरा अर्थ लिए हुवे हे | तो आइये हम उनके दोहो को पढ़कर कुछ ज्ञान प्राप्त करे |

kabir das ji ke dohe
kabir das ji ke dohe

गुरु गोविन्द दोउ खड़े , कांके लागू पाय |
बलिहारी गुरु आपने , गोविन्द दियो बताय कबीरा |
गोविन्द दियो बताय |

कबीर जी के इस दोहे का भावार्थ यह हे की जब आपके सामने गुरूजी और प्रभु (गोविन्द ) दोनों एक साथ खड़े हो तो हम इस असमंजस में पड़ जाते हे की सबसे पहले किसके चरण स्पर्श करू क्युकी गुरु और प्रभु दोनों ही महान हे इस स्थिति में प्रभु ने ही बता दिया की गुरु का स्थान सबसे ऊँचा होता हे तो आप पहले गुरूजी के चरण स्पर्श करे |

ऐसी वाणी बोलिये , मन का आपा खोय |
ओरन को सीतल करे , आप ही सीतल होय |
आप ही सीतल होय |

संत श्री कबीर दास जी कहते हे की मनुष्य को कभी भी ऐसी वाणी नहीं बोलनी चहिये जिससे किसकी का दिल दुखे और हम मन का आपा खो दे | हमेशा ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे हम भी मन से शुद्ध रहे और दूसरा भी खुश रहे और आपसी प्रेम हमेसा बना रहे |

बड़ा भया तो क्या भया , जेसे पेड़ खजूर |
पंछी को छाया नहीं , फल लागे अति दूर |
फल लागे अति दूर |

संत कबीर दास जी के इस दोहे में यह कहा हे की बड़ा होना कोई बड़ी बात नहीं हे खजूर का पेड़ भी बड़ा होता हे पर उससे किसी को फायदा नहीं होता हे ना तो किसी पक्षी को छाया मिलती हे और ना ही किसी को उसके फल मिल पाते हे | स्वयं बड़ा होकर दुसरो के हित के लिए जीना ही सही मायने में बड़पन हे |

निंदक नियरे राखिये , आँगन कुटी छवाय |
बिन पानी साबुन बिना , निर्मल करे सुहाय |
निर्मल करे सुहाय |

संत कबीर साहब कहते हे की जो मनुष्य हमसे जलता हे और हमारी निंदा करता हे ऐसे मानव को हमेशा अपने साथ ही रखना चाहिए ताकि वो जो भी कमिया हममे बताये हम उन कमियों को दूर कर सके और साफ़ छवि के मनुष्य के रूप उभर सके | अर्थात वह बिना तेल और साबुन के हमारी कमियों को धो देता हे |

दुःख में सुमिरन सब करे , सुख में करे ना कोय |
जो सुख में सुमिरन करे , तो दुःख काहे होय कबीरा |
तो दुःख काहे होय |

संत कबीर दास जी ने कहा हे की हम पर जब दुखो का साया मंडराता हे तब ही हमें सच्चे मन से प्रभु की याद आती हे और हम प्रभु जी से विनती करने लग जाते हे की हमारे दुःख दूर करो लेकिन जब हम सुखी होते हे तब हम प्रभु को भूल जाते हे और याद भी नहीं करते हे | इस पर कबीर दास जी ने कहा हे की अगर हम सुख में भी प्रभु का गुणगान कर रहे होते तो हमें दुःख किसी भी बात का नहीं होता |

kabir das ji ke dohe
kabir das ji ke dohe

माटी कहे कुहार से , तू क्यों रोंदे मोय |
एक दिन ऐसा आएगा , में रोंदुंगी तोय रे भैया |
में रोंदुंगी तोय |

कबीर दास जी ने इस दोहे में कहा हे की एक कुम्हार मिटटी को रोंद कर उससे मिटटी के बर्तन बनाता हे तो इस बात पर मिटटी ने कुम्हार से कहा की हे कुम्हार तुम मुझे क्यों रोंद रहे हो मेने तुम्हारा क्या बिगाड़ा हे पर एक दिन ऐसा आएगा जब में भी तुम्हे मिटटी में मिला दूंगी अर्थात मरने के बाद हम सभी को मिटटी में ही मिल जाना हे |

मेरा मुझ में कुछ नहीं , जो कुछ हे सो तेरा |
तेरा तुझको सोंप दे , क्या लागे हे मेरा कबीरा |
क्या लागे हे मेरा |

कबीर दास जी ने भी क्या खूब कहा हे इस दोहे में की इस संसार में जब में आया तब मेरे पास कुछ नहीं था धीरे धीरे जीवन बिताया सब साधन प्राप्त किये और जब वापस जाने का समय आया तब भी मेरे पास कुछ नहीं था | अर्थात जो कुछ भी आज हमारे पास हे सब कुछ प्रभु की ही देन हे और प्रभु का प्रभु को ही सोंप दिया हमारा तो इसमें कुछ नहीं लगा इसलिए प्रभु का गुणगान करना सर्वोतम हे |

काल करे सो आज कर , आज करे सो अब |
पल में प्रलय होयगी , बहुरि करेगा कब रे भैया |
बहुरि करेगा कब |

कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि जो भी हमने कोई काम सोचा हे उस काम को कल के बजाय आज कर लो और जो आज करना हे उसे अभी कर लो बिलकुल भी झिझक मत करो और आलस मत करो क्युकी क्या पता अगले पल ही प्रलय हो जाये और हम इस धरती पर ना रहे फिर उस कार्य के लिए हमें सदा के लिए पछताना [पड़ जाता हे | फिर वो काम कभी नहीं हो सकता |

जात ना पूछो साधू की , पूछ लीजियो ज्ञान |
मोल करो तलवार का , पड़ी रहन दो मयान कबीरा |
पड़ी रहन दो मयान |

kabir das ji ke dohe
kabir das ji ke dohe

कबीर दास जी ने कहा हे की कभी भी किसी संत या साधू से उसकी जात नहीं पूछनी चाहिए अगर कुछ पूछना ही हे तो उससे ज्ञान की बाते जाने | क्युकी जिस तरह हम तलवार खरीदने जाते हे तो हम तलवार का मोलभाव करते हे ना की म्यान का उसी प्रकार साधू से हमेशा ज्ञान की बाते ही करनी चाहिए जाती पूछकर साधू का अपमान नहीं करना चाहिए |

नहाये धोये क्या हुआ , जो मन मेल ना जाय |
मीन सदा जल में रहे , धोये बास ना जाय कबीरा |
धोये बास ना जाय |

कबीर दास जी ने कहा हे की अगर हम हमारे मन के मेल को साफ़ नहीं कर सकते हे तो हमारे रोज नहाने धोने का क्या फायदा वेसे तो हम रोज नहाते हे और मन में कपट और झूठ भरा पड़ा हे तो ऐसा नहाना किसी काम का नहीं हे क्युकी मछली हमेशा पानी में ही रहती हे फिर भी जब उसको बाहर निकालकर धोते हे तो भी वह दुर्गंघ ही देती हे तो नहाने में भी फर्क हे अर्थ हे की हमें मन और कर्म तथा सच्ची श्रध्दा से प्रभु का गुणगान करना चाहिए |

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ , पंडित भया ना कोय |
ढाई अक्षर प्रेम का , पढ़े सो पंडित होय कबीरा |
पढ़े सो पंडित होय |

कबीर दास जी का इस दोहे से अर्थ हे की किताबी ज्ञान के साथ साथ व्यावहारिक ज्ञान भी हमारे जीवन में अतिआवश्यक हे | ये दोनों ज्ञान एक दूसरे के बिना अधूरे हे | वर्ना कोई भी प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ पंडित हो जायेगा |

साईं इतना दीजिये , ज्या में कुटुंब समाय |
में भी भूखा ना रहू , साधू ना भूखा जाय कबीरा |
साधू ना भूखा जाय |

कबीर जी ने इस दोहे में यह कहा हे की हे प्रभु हमें बास इतना सक्षम बनाये की में और मेरा परिवार सकुशल रह सके तथा जो कोई भी साधू संत मेरे द्वार पर आये वो भी भूखा ना जा सके | अर्थात सबुरी करने का वरदान दे |

माखी गुड में गडी रहे , पंख रहे लिपटाय |
हाथ मले और सर धुले , लालच बुरी बलाय कबीरा |
लालच बुरी बलाय |

कबीर दास जी का इस दोहे से अर्थ सांसारिक मोहमाया से लिया गया हे कबीर दास जी कहते हे की जिस प्रकार एक मक्खी गुड़ के साथ लिपटी रहती हे और अपने पंख गुड़ पर चिपकाये रखती हे और जब उड़ने का समय होता हे तब गुड़ से चिपके होने के कारण वह उड़ नहीं पाती हे और अफ़सोस करती हे और मर जाती हे | ठीक वैसे ही इस मायावी संसार में मनुष्य सांसारिक मोहमाया हे फस जाता हे और जब अंत समय आता हे तब वह केवल अफ़सोस करता हे और मर जाता हे |

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इन दोहो के साथ ही कबीर दस जी का एक बहुत ही सुन्दर भजन भी लिरिक्स के रूप में दिया जा रहा हे जिससे आप इस भजन को पढ़कर काफी कुछ ज्ञान की प्राप्ति कर लोगे | इस भजन '' मनुष्य जनम अनमोल रे भजन '' में मनुष्य के जीवन का महत्व बताया गया हे की कैसे आप इस अनमोल जीवन को परहित हे लिए उपयोग में ला सकते हो और हमें सभी के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए | 
और ये भी बताया गया हे की अगर हम अभी ऐसा कुछ नहीं करेंगे तो समय हाथ से निकल जायेगा और हम फिर कुछ नहीं कर पाएंगे | तो आइये आप और हम मिलकर इस भजन '' मनुष्य जनम अनमोल रे भजन '' और पढ़कर और सुनकर आनद की प्राप्ति करे |

Manushya janam anmol re bhajan lyrics in hindi | मनुष्य जनम अनमोल रे भजन लिरिक्स हिंदी


kabir das ji ke dohe
kabir das ji ke dohe

मनुष्य जनम अनमोल रे मिटटी में ना रोल रे |
अब जो मिला हे फिर ना मिलेगा |
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं रे |

मनुष्य जनम अनमोल रे मिटटी में ना रोल रे |
अब जो मिला हे फिर ना मिलेगा |
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं रे |

मनुष्य जनम अनमोल रे मिटटी में ना रोल रे........

तू हे बुलबुला पानी का , मत कर गर्व जवानी का |
नेक कमाई कर ले भाई , पता नहीं जिंदगानी का |
तू हे बुलबुला पानी का , मत कर गर्व जवानी का |
नेक कमाई कर ले भाई पता नहीं जिंदगानी का |
मीठा सबसे बोल रे मिटटी में ना रोल रे |
अब जो मिला हे फिर ना मिलेगा |
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं रे |
मनुष्य जनम अनमोल रे मिटटी में ना रोल रे.......

तू सत्संग में आया कर , गीत प्रभु के गाया कर |
शाम सवेरे बेठ के बन्दे , ध्यान प्रभु का लगाया कर |
तू सत्संग में आया कर , गीत प्रभु के गाया कर |
शाम सवेरे बेठ के बन्दे , ध्यान प्रभु का लगाया कर |
नहीं लगता कुछ मोल रे , मिटटी में ना रोल रे |
अब जो मिला हे फिर ना मिलेगा |
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं रे |
मनुष्य जनम अनमोल रे मिटटी में ना रोल रे.......

kabir das ji ke dohe
kabir das ji ke dohe

मतलब का संसार हे नहीं इसका ऐतबार हे |
संभल संभल कर कदम धरो तुम फुल नहीं ये कार हे |
मतलब का संसार हे नहीं इसका ऐतबार हे |
संभल संभल कर कदम धरो तुम फुल नहीं ये कार हे |
मन की आँखे खोल रे , मिटटी में ना रोल रे |
अब जो मिला हे फिर ना मिलेगा |
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं रे |
मनुष्य जनम अनमोल रे मिटटी में ना रोल रे.......

ये सतगुरु सिरमौर हे ज्ञान के भंडार हे
जो कोई इनकी शरण में आवे करते भव से पार हे |
ये सतगुरु सिरमौर हे ज्ञान के भंडार हे
जो कोई इनकी शरण में आवे करते भव से पार हे |
ज्ञान हे अनमोल रे , मिटटी में ना रोल रे |
अब जो मिला हे फिर ना मिलेगा |
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं रे |

मनुष्य जनम अनमोल रे मिटटी में ना रोल रे |
अब जो मिला हे फिर ना मिलेगा |
कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं रे |


Manush Janam Anmol Re Bhajan Lyrics | मनुष जनम अनमोल रे मिट्टी मे ना रोल रे भजन लिरिक्स | manushya janam anmol re lyrics

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