Kabir sahib ke dohe lyrics in hindi | kabir daas ji ke dohe | कबीर अमृतवाणी
नमस्कार साथियो आज हम हिंदी भक्तिधारा के प्रसिद्ध कई संत श्री कबीरदास जी के दोहो के बारे में पढ़ेंगे संत श्री कबीर साहिब पंद्रहवी शताब्दी के सबसे महान क्रांतिकारी व्यक्ति थे | इन्होने अपने जीवन काल में अनेक रचनाए लिखी | इन्होंने अपनी लिखी गयी कविताओ तथा दोहो के माध्यम से समाज में काफी बदलाव करने चाहे | आज भी संत श्री कबीर जी के दोहे विश्व भर में प्रचलित है। तो आइये आज हम कबीर दास के दोहे पढ़ेगे |
कबीर दास जी के एक एक दोहे में जीवन का अत्यंत गहरा अर्थ छुपा हुआ हे | जिनको पढ़कर हम जीवन पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करते हे | कबीर दास जी ने दोहो के जरिये समाज में फैला जातिगत भेदभाव को मिटाना चाहते थे साथ ही समाज में फैली कई बुराइयों को नष्ट करने का प्रयास किया | इनके ज्यादातर दोहो में हमें जातिगत भेदभाव को मिटाने के बारे में पढ़ने को मिल जायेगा |
वास्तव में संत श्री कबीर दास जी ने जन्म तो मुस्लिम परिवार में लिया था लेकिन वह हिंदू धर्म को मानते थे और सम्मान भी करते थे। ये बात इनके लिखे गए दोहो से स्पष्ट हो जाती हे |
कबीर साहिब की सोच हमेशा ही सबसे अलग रहती थी जैसे की वह ईश्वर को साहिब कहकर पुकारते थे और कबीर साहिब के नीची जाती में जनम लेने के कारण इन्हे अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ा | उन दिनों की बात जब रामानंद जी बहुत बड़े गुरु थे और उनका हर जगह सम्मान और पूजा की जाती थी और जब कबीर जी इनसे मिलने गए तो उन्हें मिलने नहीं दिया गया |
कबीर साहिब रामानंद जी को अपना गुरु बनाना चाहते थे | कई मुश्किलों का सामना करने पर आख़िरकार गुरु रामानंद जी ने इनको अपना शिष्य बना लिया | कबीर दास जी ने शिक्षा प्राप्त करने के बाद अनेक लोगो को पढ़ाया और कई बुराइयों का अंत किया | और इनके लिखे दोहो से कइयों का जीवन बदल गया और वे प्रभु की भक्ति में लीन हो गए | आइये आज आप और हम मिलकर इनके दोहो से कुछ सीख प्राप्त करे और आत्मसात करे |
आपकी सुविधा के लिए कबीर साहब के दोहो को मूल भाषा में अर्थ सहित और उच्चारण हेतु english भाषा में भी लिखा गया हे | जो आप प्रत्येक दोहे के निचे देखकर पढ़ सकते हे | धन्यवाद |
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Kabir das ji ke dohe lyrics in hindi |
Kabir sahib ke dohe lyrics in hindi | कबीर दास जी के दोहे लिरिक्स
1- कहा कियो हम आय कर कहा करेंगे पाय |
इनके भये न उतके चाले मूल गवाय कबीरा , चाले मूल गवाय |
Kaha kiyo ham aay kar kaha karenge paay.
Inke bhaye na utake chaale mul gavaay kabira , chaale mul gavaay.
अर्थ : कबीरदास जी का इस दोहे से आशय हे की इस दुनिया में हम आये हे और एक दिन चले जायेंगे लेकिन इस बीच हमने यह आने पर प्रभु की भक्ति नहीं की और जाने के समय भी हम प्रभु भक्ति नहीं करे तो ना तो हम इस दुनिये का हुवे और ना ही हम स्वर्ग के हुवे केवल हमारे लिए नरक का रास्ता बचा हे |
2- कुटिल बचन सबसे बुरा जासे होत हार |
साधु वचन जल रूप हे बरसे अमृत धार कबीरा , बरसे अमृत धार |
Kutil bachan sabse bura jaase hot haar.
Sadhu vachan jal rup he barse amrit dhaar kabira , barse amrit dhaar.
अर्थ : कबीर दास जी कहते हे की इस दुनिया में अगर सबसे बुरी कोई चीज हे तो वह हे कटु वचन ये किसकी को बोल बोलते हे तो यह हमारे शरीर को जला कर राख कर देता हे इसके विपरीत यदि सज्जन पुरुष किसी को भी कुछ बोले तो उसके बोल अत्यंत मीठे होते हे जिससे वातावरण अमृतमय हो जाता हे |
3- कहता तो बहना मिले गहना मिला ना कोय |
सो कहता वह जान दे जो नहीं गहना कोय कबीरा , जो नहीं गहना कोय |
Kehta to behna mile gehna milaa naa koy.
So kehta veh jaan de jo nahi gehna koy kabira , jo nahi gehna koy.
अर्थ : कबीर दास जी कहते हे की इस दुनिया में बड़ी बड़ी बाते कहने वाले तो बहुत मिलते हे लेकिन सत्य बात को समझाने वाला और उसको आत्मसार करने वाला आज तक कोई नहीं मिला और कोई अगर सच बात समझाने वाला ही नहीं हे तो उसके कहे पर चलना बेकार है |
4- कबीरा मन पंछी भया भये ते बाहर जाय |
जो जैसे संगत करे सो तैसा फल पाय कबीरा , सो तैसा फल पाय |
Kabira man panchhi bhayaa bhaye te baahar jaay.
Jo jese sangat kare so tesaa fal paay kabira , so teas fal paay.
अर्थ : कबीर दास के इस दोहे का आशय संगती के असर से हे की कबीरदास जी कहते हैं कि मन एक प्रकार से पक्षी के समान है | जिस किसी वृक्ष पर बैठेगा वैसा ही फल का रसपान करेगा | इसलिए हे मानव , तुम जिस प्रकार की संगती में रहोगे तुम्हारी आत्मा उसी प्रकार से ढल जाएगी और उसी प्रकार के कार्य करेगी |
5- कबीरा लोहा एक हे गढ़ने में हे फेल |
ताहि का बरतन बने ताहि की शमशेर कबीरा , ताहि की शमशेर |
Kabira loha ek he gadhne me he fel.
Tahi ka bartan bane taahi ki shamsher kabira , taahi ki shamsher.
अर्थ : कबीर दास जी ने इस दोहे में बड़ी ही सुन्दर बात की हे की जिस प्रकार तलवार ढाल बर्तन और भी कई औजार एक ही धातु लोहे की बने होते हे उसी प्रकार प्रभु के रूप भी अनेक हे लेकिन वह हे तो एक ही |
देह खेह हो जाएगी कोन कहेगा देह कबीरा , कोन कहेगा देह |
Kahe kabira dey tu , jab tak teri deh.
Deh kheh ho jayegi kon kahega deh kabira , kon kahega deh.
अर्थ : कबीरदास जी के इस दोहे का अर्थ हे जब तक मनुष्य जीवित हे और देने में समर्थ हे तब तक तुम दान देने का कार्य किये जाओ | क्युकी प्राण निकलने पर जब यह शरीर मिट्टी का हो जाएगा तब इसको देह कौन कहेगा ये किसी भी कार्य को करने में समर्थ नहीं रहेगी |
7- करता था सो क्यों किया अब कर क्यों पछताय |
बोया पेड़ बाबुल का आम कहा से खाय कबीरा , आम कहा से खाय |
Karta tha so kyo kiya ab kar kyu pachhtaay.
Boya ped babul ka aam kaha se khaay kabira aam kaha se khaay.
अर्थ : कबीर दास जी ने कहा हे की किसी भी कार्य को करने से पहले उस पर विचार करना चाहिए और फिर उस कार्य को करना चहिये | ये उसी प्रकार से हे की हम पेड़ तो बाबुल का बोये और हमारी इच्छा उस पेड़ से आम की हो ऐसा कार्य एकदम निष्फल रहता हे इसलिए बिना विचार के कार्य करेंगे तो फिर पछताना नहीं चाहिए |
8- कस्तूरी कुण्डल बसे मृग ढूढ़े बन माहि |
ऐसे घट घट राम हे दुनिया देखे नाही कबीरा , दुनिया देखे नाही |
Kasturi kundal base mrig dhundhe ban maahi.
Aise ghat ghat Ram he duniya dekhe naahi kabira , duniya dekhe naahi.
अर्थ : कबीर दास जी कहते हे जी इस दुनिया में भगवान प्रत्येक जीव में विराजमान है लेकिन इस संसार के प्राणी उसे देख नहीं पाते है और भगवान को पाने के लिए कई प्रकार के भक्ति के मार्ग अपनाते हे लेकिन उन्हें प्राप्त नहीं कर सकते हे और अंत में मृत्यु को पा जाते हे ठीक वैसे ही जिस प्रकार एक हिरण की नाभि में एक बहुमूल्य वस्तु '' कस्तूरी '' रहती है और वह उसे पाने के लिए इधर-उधर भागता रहता हे कई जतन करता है लेकिन उस कस्तूरी को नहीं पा सकता और अंत में मर जाता है |
9- कबीरा सोता क्या करे जागो जपो मुरार |
एक दिना हे सोवना लाम्बे पाँव पसार कबीरा , लाम्बे पाँव पसार |
Kabira sota kya kare , jaago japo Muraar.
Ek dina he sovna laambe paav pasaar kabira , laambe paav pasaar.
अर्थ : कबीरदास जी इस दोहे में अपने आप को संबोधित करते हुए कहते रहे हे की हे कबीर तुम सोने में अपना समय क्यों नष्ट कर रहे हो | जब तक जीवित हो तब तक अपने आप को भगवान के सुमिरन में लगाओ और अपने जीवन को सफल बनाओ | क्युकी आखिर में एक दिन इस शरीर को त्यागने के बाद तो सोना ही है |
10- कागा काको धन हरे कोयल काको देय |
मीठे शब्द सुनाय के जग अपनो कर लेय कबीरा , जग अपनो कर लेय |
Kaaga kaako dhan hare koyal kaako dey.
Meethe shabd sunaay ke jag apno kar ley kabira , jag apno kar ley.
अर्थ : कबीर दास जी इस दोहे में कहते हे की कागा किसी का क्या बिगड़ता हे जो सारा संसार उससे नफरत करता रहता है लेकिन उसकी आवाज कर्कश होती हे उस हिसाब से लोग उससे नफरत करते हे और कोयल कोनसा किसी को अपनी धुन दे देती है जो लोग उसकी तरफ आकर्षित होते हे वह तो केवल अपनी मधुर आवाज से इस संसार को मन्त्रमुघ्ध कर लेती है |
आपको ये कबीर दास जी के दोहे कैसे लगे कृपया हमें कमेंट करके जरूर बताये और हमारी साइट https://www.greatbhajan.live को फॉलो करे धन्यवाद |
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