Kabir sahib ke dohe lyrics in hindi | kabir daas ji ke dohe | कबीर अमृतवाणी

Kabir sahib ke dohe lyrics in hindi | kabir daas ji ke dohe | कबीर अमृतवाणी


Kabir sahib ke dohe lyric
Kabir sahib ke dohe lyric

Kabir das ji ke dohe in lyrics 

नमस्कार साथियो आज हम आपके लिए कबीर दास जी के दोहे नाम से आर्टिकल लेकर आये हे जिसमे संत श्री कबीर दास जी के कुछ दोहे और उनके हिंदी और अंग्रेजी लिरिक्स और उनका अर्थ यहां दिया गया हे | संत कबीर दास जी हिंदी भक्ति रास धारा के प्रसिद्ध कवि हे | इनके द्वारा लिखे दोहे आज भी अनेक लोग पढ़ते हे और उनका अर्थ समझने की कोशिश करते हे |

कबीर दास जी के एक एक दोहे में बहुत ही गहरा अर्थ छुपा हुआ हे | और विशेषकर कबीर दास जी ने प्रभु की भक्ति करने पर ही जोर दिया तथा समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया और काफी हद तक कई बुराइयों को दूर करने में सफल भी रहे | आज के युग में लोग कबीर दास जी के दोहे पढ़कर उनके अर्थ से अपना जीवन प्रभु स्मरण में लगा रहे हे और प्रभु की कृपा प्राप्त कर रहे हे |

कबीर दास जी के दोहो से काफी लोगो के जीवन में कई प्रकार से बदलाव आया हे | तो आइये उन्ही के लिखे हुवे कुछ दोहो में से कुछ दोहे यहां लिखे हुवे हे और उनका अर्थ भी साथ में दिया गया हे आप उन्हें पढ़कर आनंद प्राप्त कर सकते हे | ऐसे ही और मजेदार पोस्ट के लिए आप हमारी साइट https://www.greatbhajan.live पर हमसे संपर्क कर सकते हे |


Kabir sahib ke dohe lyrics in hindi | कबीर दास जी के दोहे लिरिक्स


1- कबीरा सोई पीर है , जो जा नै पर पीर |
जो पर पीर न जानइ , सो काफिर के पीर |
कबीरा सो काफिर के पीर ||

Kabira soi peer he , je jaa nai par peer.
Jo par peer n janai , so kafir ke peer.
Kabira so kafir ke peer.

अर्थ - कबीर दास जी इस दोहे में कहते है कि एक सच्चा पीर या सच्चा संत वही है जो दूसरे की पीड़ा को जानता हो या समझता हो तथा जो दूसरे के दुःख को नहीं जानते वे बेदर्द हैं – निष्ठुर हैं और काफिर है | इसका मतलब यह हे की जब तक हम दुसरो के दुःख को अपना नहीं समझेंगे तब तक हम उनके दुःख दर्द से अनजान रहेंगे |


Kabir sahib ke dohe lyric
Kabir sahib ke dohe lyric

2- कबीरा मनहि गयन्द है , आकुंश दै-दै राखी |
विष की बेली परि रहे , अमृत को फल चखी |
कबीरा अमृत को फल चखी ||

Kabira manahi gayand he , aankush de-de raakhi.
Vish ki beli pari rahe , amrit ko fal chakhi.
Kabira amrit ko fal chakhi.

अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि मनुष्य का ये मन एक मदमस्त हाथी के समान है | जिस प्रकार महारथी अपने हाथी को अपने वश में करता हे तुम भी इसे ज्ञानरूपी पाबन्दी लगा कर इसे अपने वश में करना सीख लो और विषयरूपी विष- लता को त्यागकर स्वरूप-ज्ञान अमृत रूपी फल का स्वाद लो |


3- कबीर यह जग कुछ नहीं , खिन खारा और मीठ |
काल्ह जो बैठा भण्डपे , आज भसाने दीठ |
कबीरा आज भसाने दीठ ||

Kabir yah jag kuch nahi , khin khaara or meeth.
Kalh jo betha bhandpe , aaj bhasaane deeth.
Kabira aaj bhasaane deeth.

अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि इस संसार में कभी भी समय एक सा नहीं रहता हे | पल में ये कड़वा और पल भर में ये मीठा हो जाता हे | मनुष्य के लिए भी कुछ ऐसा ही हे की एक समय में तो वो राजा की भांति मंडप में बैठा हे और एक समय में शमशान में | समय के आगे किसी की नहीं चलती हे |


4- कबीरा आप ठगाइए , और न ठगिये कोय |
आप ठगे सुख होत है , और ठगे दुख होय |
कबीरा और ठगे दुख होय ||

Kabira aap thagaiye , or n thagiye koy.
Aap thage sukh hot he , or thage dukh hoy.
Kabira or thage dukh hoy.

अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि इस संसार में ठगो की कोई कमी नहीं हे ठग हमेशा दुसरो को दुखी ही करता हे | इसलिए हमेशा खुद को ठग लेना उपयुक्त हे क्युकी खुद को ठगना में ख़ुशी होती हे लेकिन दुसरो को ठगने में हमेसा दुःख ही होता हे |


5- कथा किरतन कुलविशे , भव सागर की नाव |
कहत कबीरा या जगत , नाही और उपाय |
नाही और उपाय ||

Katha kirtan kulvishe , bhav saagar ki naav.
Kahat kabira ya jagat , naahi or upay.
Kabira naahi or upay.

अर्थ – कबीर दास जी कहते हे की ये संसार एक प्रकार की नाव हे जिसमे हमें चलते ही रहना हे पर हमें शांति नहीं मिलती हे अगर हमें शांति प्राप्त करनी हे या मोक्ष प्राप्त करना हे तो हमें प्रभु का नाम का जाप करने ही होगा उसके अलावा हमारे पास और कोई रास्ता ही नहीं हे |


Kabir sahib ke dohe lyric
Kabir sahib ke dohe lyric

6- कबीरा यह तन जात है , सके तो ठौर लगा |
कै सेवा कर साधु की , के गोविन्द गुनगा |
कबीरा के गोविन्द गुनगा ||

Kabira yeh tan jaat he , sake to thaur lagaa.
Kai seva kar sadhu ki , ke Goving gunagaa.
Kabira ke Govind gunagaa.

अर्थ – कबीर दास जी कहते है कि गौर से देखो यह तुम्हारा शरीर जा रहा है | यह वो शरीर हे जो तुम्हारे पूरे जीवन की कमाई है | इसे व्यर्थ न जाने दो | साधु की सेवा और गोविंद का नाम सुनकर इस शरीर को पाक बना दो अर्थात इस शरीर को प्रभु के स्मरण में लगा दो और इसे पवित्र कर दो |


7- कलि खोटा सजग आंधरा , शब्द न माने कोय |
चाहे कहू सत आइना , सो जग बैरी होय |
कबीरा सो जग बैरी होय ||

Kali khota sajag aandhra , shabd n maane koy.
Chahe kahu sat aaina , so jag bairy hoy.
Kabira so jag bairy hoy.

अर्थ – संत श्री कबीर दास कहते है कि इस कलयुग में ज्ञान को समझने वाला कोई नहीं है। जैसे ही तुम किसी को ज्ञान देने जाओगे वह उल्टा तुम्हे ही बुरा समझने लगेगा | आज के इस युग में और इस अंधकार भरी दुनिया में कोई किसी का नहीं होता | अपनापन क्या होता हे किसी को नहीं पता |


8- केतन दिन ऐसे गए, अन रुचे का नेह |
अवसर बोवे उपजे नहीं , जो नहीं बरसे मेह |
कबीरा जो नहीं बरसे मेह ||

Ketan din aise gaye , an ruche kaa neh.
Avsar bove upje nahi , jo nahi barse meh.
Kabira jo nahi barse meh.

अर्थ – कबीर दास जी के इस दोहे में कहा गया हे कि हे मनुष्य कितने ही दिन तो ऐसे ही निकल गए लेकिन तुमने अभी तक प्रभु के साथ अपना प्रेमभाव नहीं दिखाया अर्थात प्रभु स्मरण में अभी तक समय नहीं दिया हे | जिस तरह कोई बंजर जमीन पर कभी भी कोई फसल पैदा नहीं हो सकती उसी प्रकार बिना प्रेम के कोई भी भक्ति नहीं नहीं की जा सकती हे |


9- कबीर जात पुकारया, चढ़ चन्दन की डार |
वाट लगाए ना लगे , फिर क्या लेत हमार |
कबीरा फिर क्या लेत हमार ||

Kabir jaat pukarya , chadh chandan ki daar.
Vaat lagaye naa lage , fir kya let hamaar.
Kabira fir kya let hamaar.

अर्थ – संत कबीर दास जी ने कहा हे कि मैंने तो चंदन की डाल पर बैठकर कई लोगों को पुकारा था उनका मार्गदर्शन करने के लिए लेकिन अब वे लोग उनके पास गए ही नहीं तो कबीर दास जी उनका क्या करे |


10- कबीरा खालिक जागिया , और ना जागे कोय |
जाके विषय विष भरा, दास बंदगी होय |
कबीरा दास बंदगी होय ||

Kabira khaalik jaagiya , or naa jaage koy.
Jaake vishay vish bharaa , daas bandagi hoy.
Kabira daas bandgi hoy.

अर्थ – संत कबीर दास ने इस दोहे से ये कहा हे कि इस संसार में या तो वह जागता है जो या तो परमात्मा हो या प्रभु का जप करने वाला या फिर जहर उगलने वाला | इन तीनों के अलावा कोई तीसरा इंसान नहीं जागता है |


आपको कबीर दास जी के दोहे पढ़कर केसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताये |


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