Kabir sahib ke dohe lyrics in hindi | kabir daas ji ke dohe | कबीर अमृतवाणी
Kabir sahib ke dohe |
नमस्कार साथियो आज हम आपके लिए कबीर दास जी के दोहे लिरिक्स लेकर आये हे | ये तो सभी को पता हे की कबीर दास जी हिंदी भक्ति धरा के एक अनमोल कवि थे जिनके प्रत्येक दोहे में एक गहरा अर्थ छुपा होता हे | कबीर दास जी के इन दोहो को जिसने भी अपने जीवन में उतार लिया बो भव सागर से पार हो गया |
उसी तरह आज हम आपके लिए कबीर दास जी के दोहे लिरिक्स हिंदी और अंग्रेजी भाषा में लेकर आये हे और इन दोहो के अर्थ भी साथ में दिए गए हे | आप उन्हें पढ़कर उनके अर्थ को अपने जीवन में उतारे और प्रभु की भक्ति और सेवा में तल्लीन हो जाओ |
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1- यह तन विष की बेलरी , गुरु अमृत की खान |
शीश दियो जो गुरु मिले , तो भी सस्ता जान |
Yeh tan vish ki belari , guru amrit ki khaan.
Sheesh diyo jo guru mile , to bhi sasta jaan.
अर्थ - संत श्री कबीर दास जी कहते है कि यह जो शरीर है वो कई प्रकार के विष और जहर से भरा हुआ है और समाज में गुरु को अमूल्य अमृत की खान माना गया है | अगर कभी भी अपना शीश देने के बदले में आपको कोई गुरु मिले तो ये शेष के बदले गुरु मिलने का सौदा भी बहुत सस्ता है |
2- मलिन आवत देख के , कलियन कहे पुकार |
फूले फूले चुन लिए , कलि हमारी बार |
Maalin aavar dekh ke , kaliyan kahe purkaar.
Fule fule chun liye , kali hamari baar.
अर्थ - संत श्री कबीर दास जी कहते है कि जब बाग़ में मालिन ( फूल बेचने वाली ) आती हे तो उसको आते देख बगीचे की कलिया आपस में बाते करती है कि आज मालिन ने इन फूलों को तोड़ लिया और अब कल हमारी बारी आएगी | अर्थात इस दोहे को कबीर जी ने जीवन चक्र से जोड़ा हे की आज हम युवा है कल हम भी वृद्ध होगे और एक दिन मरने के बाद मिटटी में मिल जायेंगे | मतलब यही हे की आज की कली कल फूल बनेगी |
3- जहाँ दया तहा धर्म है , जहाँ लोभ वहां पाप |
जहाँ क्रोध तहा काल है , जहाँ क्षमा वहां आप |
Jaha dayaa taha dharm he , jaha lobh vaha paap.
Jaha krodh taha kaal he , jaha kshama vaha aap.
अर्थ - संत कबीर दास जी कहते है कि जहा जैसी भावनाये होंगी वह वैसा ही स्वभाव होगा अर्थात जहाँ दया है वहा धर्म है और जहा लोभ है वहा पाप है और जहा क्रोध है वहा विनाश है और जहा क्षमा है वहा ईश्वर का वास होता है और क्षमा ही सबसे बड़ा धर्म होता हे |
4- तीरथ गए से एक फल , संत मिले फल चार |
सतगुरु मिले अनेक फल , कहे कबीर विचार |
Tirath gaye se ek fal , sant mile fal chaar.
Satguru mile anek fal , kahe kabir vichaar.
अर्थ - संत कबीर दास जी इस दोहे में विचार कर बोलते हे की तीर्थ यात्रा करने से एक पुण्य की प्राप्ति होती है | लेकिन साधु संतो की संगति से चार पुण्य मिलते है | और सच्चे गुरु के मिल जाने से जीवन पुण्यात्मा हो जाता है |
5- जब मैं था तब हरी नहीं , अब हरी है मैं नाही |
सब अँधियारा मिट गया , दीपक देखा माही |
Jam me ( proud ) tab hari nahi , ab hari he me naahi.
Sab andhiyaara mit gaya , Deepak dekha maahi.
अर्थ - कबीर दास जी कहते है कि जब मेरे अंदर अहंकार अर्थात अहम् (मैं) था तब मेरे ह्रदय में हरी का वास नहीं था | और अब मेरे ह्रदय में हरी (ईश्वर) का वास है तो अहंकार (मैं) नहीं है | जब से मेरे अंदर गुरु रूपी दीपक का उजाला हुवा हे तब से मेरे अंदर का अंधकार पूरी तरह से समाप्त हो गया है |
6- राम बुलावा भेजिया , दिया कबीरा रोय |
जो सुख साधू संग में , सो बैकुंठ न होय |
Ram bulawa bhejiya , diya kabeeri roy.
Jo sukh sadhu sang me , so bekunth n hoy.
अर्थ - कबीर दास जी कहते हे की इस दुनिया में जब हम साधु संतो और सच्चे गुरु की संगति में रहते हे तो हमें बड़ा आनंद प्राप्त होता हे लेकिन जब मृत्यु का समय नजदीक आता हे और ईश्वर का बुलावा आता हे तो संत कबीर दास जी रो पड़े वो इसलिए की जो आनंद संत और सज्जनों की संगति से मिलता हे उतना आनंद तो स्वर्ग लोक में भी नहीं होगा |
7- रात गंवाई सोय के , दिवस गंवाया खाय |
हीरा जन्म अमोल सा , कोड़ी बदले जाय |
Raat gavaai soy ke , divas ganwaaya khaay.
Heera janm amol sa , kodi badle jaay.
अर्थ - संत कबीर दास जी कहते है कि ये शरीर हीरे के सामान कीमती हे इसे रात को सोते हुए हमने खो दिया और जब दिन हुआ तो खाते खाते गँवा दिया | ईश्वर ने हमें जो ये अमूल्य जीवन दिया है वो कोड़ियों के भाव में बदला जा रहा है |
8- माया मरी न मन मरा , मर-मर गए शरीर |
आशा तृष्णा न मरी , कह गए दास कबीर |
Maya mari n man maraa , mar mar gaye sharer.
Aasha trishna n mari , keh gaye daas Kabir.
अर्थ - कबीर जी कहते है कि मनुष्य जीवन में इच्छाओ की पूर्ति कर पाना असंभव हे क्युकी एक पूरी होती हे तो दूसरी जाग जाती हे इसलिए माया धन और इंसान का मन कभी नहीं मरा , इंसान का शरीर मरता है शरीर बदलता है लेकिन इंसान की इच्छा और ईर्ष्या कभी नहीं मरती |
9- दोस पराए देखि करि , चला हसन्त हसन्त |
अपने याद न आवई , जिनका आदि न अंत |
Dos paraaye dekhi kari , chlaa hasant hasant.
Apne yaad n aavai , jinka aadi n ant.
अर्थ - कबीर दास जी कहते हे की मनुष्य की आदर कुछ इस तरह होती हे की उनको अपनी बुराई कभी नजर ही नहीं आती हे इंसान की फितरत कुछ ऐसी है कि दूसरों के अंदर की बुराइयों को देखकर उनकी कमियों पर ठहाके लगाकर हँसता है | लेकिन कभी भी अपने दोषों पर नजर नहीं डाली जिसका ना कोई आदि है और ना ही कोई अंत |
10- हिन्दू कहें मोहि राम पियारा , तुर्क कहें रहमाना |
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए , मरम न कोउ जाना |
Hindu kahe mohi Ram piyaara , turk kahe Rehmaana.
Aapas me dou ladi ladi muye , maram n kou jaana.
अर्थ - कबीर दास जी कहते हे की सब धर्मो में अपने अपने धर्म के प्रति आदर और सम्मान हे जैसे हिन्दुओ के लिए प्रभु श्री राम प्यारे है और मुस्लिमों के लिए अल्लाह रहमान प्यारे है | दोनों राम रहीम के चक्कर में आपस में लड़ते हे और मरते है लेकिन कोई सत्य को नहीं जान पाया की राम और रहीम एक ही हे |
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